अमेरिकन टैरिफ से निर्यातकों में अनिश्चितता, स्थिति का वास्तविक आंकलन कर सरकार पैदा करे निर्यातकों में विश्वास: ARTIA

जयपुर। अमेरिका द्वारा भारत पर लगाये गये रेसिप्रोकल टैरिफ और उसे फिलहाल 90 दिन के लिए टालने से राजस्थान के निर्यातकों में अनिश्चितता का आलम है और सभी उम्मीद कर रहे हैं कि भारत सरकार स्थिति का वास्तविक आंकलन कर निर्यातकों में विश्वास जगाने के लिए कोई ठोस पहल करेगी। उल्लेखनीय है कि अमेरिका ने भारत से होने वाले आयात पर 26 प्रतिशत की दर से रेसिप्रोकल टैरिफ लगा दिया था, जो 9 अप्रैल से प्रभावी होना था, पर फिलहाल उसे 90 दिन के लिए टाल दिया गया है। उसके बाद क्या होगा, यह बड़ी अनिष्चितता है। यह बात अखिल राज्य ट्रेड एण्ड इण्डसट्री एसोसियेशन की ओर से की गई मंथन-बैठक में सामने आई। बैठक में विष्णु भूत, कमल कंदोई, आषीष सर्राफ, जसवंत मील, प्रेम बियाणी, दिनेश गुप्ता, तरूण सारडा, ज्ञान प्रकाश, अजय गुप्ता, कैलाश शर्मा, ओ पी राजपुरोहित और रमेश गांधी उपस्थित थे।
अभी अमेरिकी सरकार ने वहां जो आयात शुल्क आरोपित है, उसके अलावा 10 प्रतिशत बेसलाइन टैरिफ बढ़ा दिया है। इसका असर यह हुआ कि जिस वस्तु पर आयात शुल्क 8 प्रतिशत था, वह 18 प्रतिशत हो गया। जिन निर्यातकों के कंटेनर प्रोसेस में हैं अर्थात उक्त टैरिफ आरोपण या बेसालाइन टैरिफ बढ़ने से पूर्व रवाना हो गये थे, उनके अमेरिका पहुंचने पर अतिरिक्त शुल्क लगना है, ऐसे में आयातक पर अतिरिक्त बोझ आ गया है। इस स्थिति को देखते हुए वालमार्ट सरीखी कंपनी ने आर्डर ही रोक दिये हैं। इस तरह अमेरिकी बाजार में भारत से किये जाने वाले निर्यात पर विपरीत प्रभाव आना शुरू हो गये हैं।
मंथन में तथ्य यह सामने आया कि टैरिफ भले ही 90 दिन के लिए टाल दिये गये हों, लेकिन जो हालात हैं उसे देखते हुए निर्यातकों में अनिश्चितता का आलम है और निर्यातक तय नहीं कर पा रहे कि क्या किया जाये। सभी निर्यातक अपने-अपने उत्पाद निर्यात क्षेत्र में फिलहाल आंकलन कर रहे हैं कि असल में क्या असर आना है और आगे क्या हालात होंगे। इस स्थिति में सरकार से अपेक्षा की जा रही है कि वह वास्तविक स्थिति का आंकलन कर निर्यातकों के बीच विश्वास पैदा करने की पहल करे। सरकार के सामने जो पहला कदम है वह है नये निर्यात बाजार की खोज को प्रोत्साहित करना और वर्तमान आपदा में अवसर कैसे सृजित हों इसके लिए विषय विशेषज्ञों की सलाह से समन्वित प्रयास करना तथा निर्यात बाजार को अनिश्चितता के दौर से उबारने का प्रयास करे।
जहां तक बात अमेरिकी बाजार की है, तो चीन समेत अनेक देशों पर ये टैरिफ लगाये गये हैं, भारत और दक्षिणी-पूर्वी एषियाई देष भी इनमें शामिल हैं। प्रथम दृष्टया अमेरिकी सरकार का मकसद है वहां की स्थानीय इंडस्ट्री को संरक्षित करना, पर अनेक उत्पाद ऐसे हैं जिनके लिए अमेरिका की निर्भरता भारत-चीन और दक्षिणी-पूर्वी एशियाई देशों पर है। रेसिप्रोकल टैरिफ के कारण ये वस्तुएं अमेरिकी उपभोक्ताओं के लिए महंगी होना स्वाभाविक है, यह महंगाई अमेरिकी बाजार में मांग को प्रभावित करेगी और वहां के स्थानीय उपभोक्ताओं के बीच असंतोष को बढ़ावा देगी। ट्रम्प की मंशा मोटे तौर पर निर्यात बाजार में चीन के बढ़ते प्रभुत्व को नियंत्रित करने की अधिक लग रही है, लेकिन इस मंषा की चपेट में भारत समेत अनेक प्रमुख निर्यातक देश आ गये हैं। भारत से अमेरिका को कुल निर्यात गत वित्तवर्ष के पहले 11 माह में 76.37 अरब डॅालर तथा आयात 41.62 अरब डॉलर रहा। अब रेसिप्रोकल टैरिफ के कारण चालू वित्त वर्ष का विदेश व्यापार कितना प्रभावित होता है, यह देखने वाली बात है।

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