सिस्टम में जवाबदेही नहीं, पिस रहे हैं नागरिक

जयपुर।
आल राजस्थान ट्रेड एंड इंडस्ट्रीज एसोसिएशन ने कहा है कि सिस्टम में जवाबदेही और व्यवहारिकता न होने से इस समय राजस्थान हड़तालों के दौर से गुजर रहा है। एक तरफ एक पखवाड़े से निजी अस्पताल बंद पड़े हैं और राजकीय चिकित्सक भी हड़ताल में मददगार बने हुए हैं, तो दूसरी तरफ मानसरोवर मध्यम मार्ग के व्यापारियों को नगर निगम नोटिस भेजकर जवाबतलब कर रहा है नतीजा वे भी हड़ताल की ओर अग्रसर हैं। ये दोनों घटनाक्रम जाहिर करते हैं कि सरकार का सिस्टम यदि जवाबदेह तथा व्यवहारिक होता तो यह नौबत नहीं आती।
आरतिया के अध्यक्ष विष्णु भूत, मुख्य संरक्षक आषीष सर्राफ, मुख्य सलाहकार कमल कंदोई व कार्यकारी अध्यक्ष प्रेम बियाणी कहते हैं कि सरकार जो राईट टू हैल्थ लेकर आई है, उसके प्रावधानों को यदि देखें तो उनमें व्यवहारिकता का अभाव है। विधानसभा में इसका विधेयक भी पारित हो गया, लेकिन माननीय विधायकों ने इसके व्यवहारिक पक्ष को कितना देखा-समझा यह अलग से देखने वाली बात है। वस्तुतः कोई भी नीति या विधेयक सिस्टम अर्थात अफसरषाही के कर-कमलोें से बनता है और उनका नजरिया कैसा है यह राईट टू हैल्थ के प्रावधानों ने बता दिया है। विधेयक के प्रावधान सुनिष्चित करते समय संबंधित स्टेक होल्डर्स के पक्ष को सुना जाता है, ताकि उसके प्रावधान व्यवहारिक बनें। यहां स्टेक होल्डर्स की बात को नकारा गया, तभी वे हड़ताल पर हैं, राज्य में चिकित्सा सेवाएं प्रभावित हो गई हैं और नागरिक पिस रहे हैं।
जयपुर के मानसरोवर स्थित मध्यम-मार्ग के सैंकड़ों व्यापारियों को नगर निगम की ओर से नोटिस भेजे गये हैं और आरोप लगाया गया है कि उन्होने सैट-बैक प्रावधानों का उल्लंघन किया है। इससे मध्यम-मार्ग के तीन हजार व्यापारी प्रभावित हैं और हड़ताल की ओर अग्रसर हैं। मध्यम-मार्ग पर आवासीय परिसरों में दुकानों का निर्माण एक-दो दिन में तो हुआ नहीं, पूरे तीन दषक में यह बाजार विकसित हुआ है। जब सैट-बैक का उल्लंघन कर दुकानें बन रही थी, तो उस समय सिस्टम क्या कर रहा था। क्या कोई जवाबदेह अधिकारी नगर निगम या आवासन मंडल में नहीं था, जो उस समय सैट-बैक के उल्लंघन को रूकवा सके। अर्थात खामी सिस्टम की और पिस रही है सोसायटी। आरतिया ने कहा है कि सिस्टम में जिन लोगों की गैर-जिम्मेदारी के कारण यह सब हुआ सबसे पहले एक्षन उनके खिलाफ होना चाहिये। रही बात बाजार और दुकानों की, तो उसके लिए संबंधित स्टेक-होल्डर्स से बातचीत कर सरकार उचित एवं व्यवहारिक समाधान निकाले।
इसी तरह जयपुर नगर निगम की  ओर से यूडी टैक्स तथा विज्ञापन-होर्डिंग आदि की ष्षुल्क वसूली का जिम्मा एक निजी कंपनी को सौंपा हुआ है, जिसकी वसूली प्रक्रिया तथा कार्य-प्रणाली  को लेकर लंबे समय से जयपुर के व्यापार जगत में आक्रोष है। यह स्थिति भी सिस्टम की खामी के कारण ही सृजित हुई है। इस स्थिति में राज्य के संवेदनषील व सुषासन देने वाले माननीय मुख्यमंत्री अषोक गहलोत से हस्तक्षेप का आग्रह है, वे सभी इन मुद्दों की गंभीरता को देखें तथा सिस्टम के गैरजवाबदेह व गैर-जिम्मेदार अधिकारियों पर आवष्यक कार्रवाई भी करें।

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