नेशनल इंस्टीट्यूट फार मैटेरियल साइंस जापान के निदेशक आलोक सिंह ने ARTIA की विशेष बैठक को किया सम्बोधित , लीथियम उत्पादन में अग्रणी हो सकता है भारत

ARTIA Meeting on lithium Production with alok singh

जयपुर। नेशनल इंस्टीट्यूट फार मैटेरियल साइंस के पूर्व निदेषक और स्ट्क्चरल मैटेरियल रिसर्च सेंटर के चीफ रिसर्चर डा. आलोक सिंह ने बताया कि लीथियम उत्पादन के क्षेत्र में भारत अग्रणी हो सकता है। आरतिया पदाधिकारियों के साथ एक बैठक में उन्होंने कहा कि देश में इलेक्ट्कि वाहनों की बिक्री लगातार बढ़ रही है, इसमें जो बैटरी लगती है उसकी उम्र औसतन पांच साल होती है। इस बैटरी से रिसाईकिलिंग प्रोसेस के जरिये लीथियम का उत्पादन किया जा सकता है और भारत इसमें लीड ले सकता है। इस रिसाईकिलिंग प्रोसेस की तकनीक जापान से भारत को मिल सकती है। बैठक में विष्णु भूत, जगदीश पोद्दार, जसवंत मील, आशीष सर्राफ, कमल कंदोई, प्रेम बियाणी, अजय गुप्ता, ओ पी राजपुरोहित, दिनेश गुप्ता, सज्जन सिंह, राकेश गोयल, तरूण सारडा, सुरेश बंसल, सचिन और कैलाश शर्मा उपस्थित थे।
आलोक सिंह का कहना था कि भारत की शिक्षा प्रणाली में एक बड़े बदलाव की जरूरत है और प्राथमिक शिक्षा में ही हुनर को शामिल किया जाना चाहिये, ताकि प्राथमिक शिक्षा प्राप्त छात्र के हाथ में कम से कम एक हुनर तो हो। इसी तरह उच्च प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च शिक्षा में भी उसे और अधिक हुनर मिलें, तो वह छात्र प्रोडक्टिव हो सकता है और उसे फिर रोजगार का संकट नहीं रहेगा। इसी के समानांतर देश की इंडस्ट्री को जिस तरह के हुनरमंद लोगों की जरूरत हो, वह हुनर स्कूल-कॉलेज शिक्षा में पढ़ाया जाये। उनका यह भी कहना था कि जापान में शिक्षकों और वैज्ञानिकों का बहुत सम्मान है और इसके पीछे वहां के नागरिकों की सोच है कि वे जो कुछ हैं, उसके पीछे शिक्षकों का योगदान है और देश जो कुछ है उसके पीछे वैज्ञानिकों का योगदान है।
उन्होंने टीम आरतिया को जापान विजिट के लिए आमंत्रित किया और कहा कि यह विजिट भारत-जापान संबंधों को न केवल एक नई दिशा देगी, बल्कि राजस्थान से आने वाले कारोबारियों-उद्यमियों को विज्ञान व इन्नोवेशन के क्षेत्र में क्या कुछ नया चल रहा है यह जानने-समझने का अवसर देगी। उन्होंने इस बात की आवष्यकता भी जताई कि राजस्थान को शोध एवं उन्नयन का बड़ा केंद्र बनाया जाना चाहिये, इसके लिए जापान वैज्ञानिक और तकनीकी सहयोग भी प्रस्तावित कर सकता है। यह सहयोग राजकीय और संस्थागत दोनों स्तर पर हो सकता है।
एक महत्वपूर्ण जानकारी उन्होंने यह भी दी कि जापान खुद हालांकि वैज्ञानिक दृष्टि से बहुत आगे है, लेकिन विगत दो दशक के दौरान भारतीय आईटी विशेषज्ञों ने विश्व को जो कुछ दिया है, उससे जापान बहुत प्रभावित है। यही वजह है कि इन विशेषज्ञों के लिए जापान में बहुत सम्मान है। राजस्थान के संदर्भ में उनका यह भी कहना था कि यहां कंप्यूटर-मोबाइल रिसाईकिलिंग के लिये भी यहां बहुत स्कोप है। जापान में स्पोर्ट्स प्रतियोगिताओं में जो स्वर्ण-पदक दिये जाते हैं, उसके लिए सोना रिसाईकिलिंग के जरिये निकाला जाता है।

 

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