खाद नीति में व्यापक सुधार हो, आर्गेनिक खाद पर फोकस की जरूरत : ARTIA

अखिल राज्य ट्रेड एंड इंडस्ट्रीज एसोसिएशन (आरतिया) ने जोर देकर कहा है कि देश को अब आर्गेनिक खाद के उपयोग और आर्गेनिक खेती पर विशेष ध्यान देना चाहिए। इसके पीछे दो प्रमुख कारण हैं: पहला, रसायनिक खाद और कीटनाशकों के बेतहाशा व अनियंत्रित उपयोग से कृषि भूमि की उर्वरा क्षमता कम हो रही है, और इनके जरिए उत्पादित फसलों से बने कृषि उत्पाद मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक सिद्ध हो रहे हैं। दूसरा, रसायनिक खाद की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए भारत की आयात निर्भरता बढ़ रही है, जो आर्थिक जोखिम पैदा कर रही है।
टीम आरतिया के अध्यक्ष विष्णु भूत, चेयरमैन कमल कंदोई, मुख्य संरक्षक आशीष सर्राफ, कार्यकारी अध्यक्ष प्रेम बियाणी, संरक्षक जसवंत मील, सलाहकार सतपाल विश्नोई, डॉ रमेश मित्तल व ओ पी राजपुरोहित, वरिष्ठ उपाध्यक्ष कैलाश शर्मा, उपाध्यक्ष दिनेश गुप्ता, राजीव सिंघल व तरुण सारडा, और सचिव आयुष जैन ने बताया कि अधिकतर आयात डीएपी (डाइअमोनियम फॉस्फेट) का होता है। वर्तमान में अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी कीमत 750 डालर प्रति टन है, जो भारत तक पहुंचने पर लगभग 68,000 रुपये प्रति टन तक पहुंच जाती है। सरकार ने इसके लिए 27,799 रुपये प्रति टन का अनुदान निर्धारित किया है। देश में डीएपी का उत्पादन 45 लाख टन है, जबकि खपत एक करोड़ टन है, जिसके लिए 55 लाख टन का आयात करना पड़ता है।
टीम आरतिया के अनुसार, भारत सरकार के उर्वरक मंत्रालय का वार्षिक बजट 1.91 लाख करोड़ रुपये से अधिक है, जिसमें 96% से अधिक राशि खाद अनुदान पर खर्च होती है। इतनी बड़ी रकम खर्च करने के बावजूद रसायनिक खाद और कीटनाशकों के अति उपयोग से भूमि की उत्पादकता घट रही है, पारिस्थितिकी बिगड़ रही है, और इनसे उत्पादित फसलें मानव स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा रही हैं। इस गंभीर स्थिति का तत्काल समाधान करने के लिए आर्गेनिक खाद और खेती को बढ़ावा देना आवश्यक है।
*नवाचार और सुझाव*
आरतिया ने रचनात्मक समाधानों की वकालत करते हुए निम्नलिखित नए सुझाव पेश किए हैं:
1. *स्मार्ट खाद संयंत्र*: ग्रामीण क्षेत्रों में छोटे-छोटे डिजिटल खाद संयंत्र स्थापित किए जाएं, जो स्थानीय स्तर पर जैविक कचरे (जैसे फल-फूल के छिलके, पत्तियां) को आर्गेनिक खाद में परिवर्तित करें व इसके अतिरिक्त कृषि उपज मंडियों में भी इन संयत्रों का उपयोग लाभप्रद होगा। इन संयंत्रों को सौर ऊर्जा से चलाया जा सकता है, जिससे लागत कम होगी और पर्यावरण लाभ होगा।
2. *ड्रोन तकनीक का उपयोग*: ड्रोन के माध्यम से आर्गेनिक खाद और जैविक कीटनाशकों का समान वितरण किसानों के खेतों में किया जाए, जिससे श्रम और समय की बचत होगी, साथ ही यह तकनीक सटीक खेती को बढ़ावा देगी।
3. *आर्गेनिक हब का निर्माण*: देश के विभिन्न हिस्सों में आर्गेनिक खेती और खाद उत्पादन के लिए विशेष “आर्गेनिक हब” बनाए जाएं, जहां किसानों को प्रशिक्षण, बीज, और बाजार तक पहुंच प्रदान की जाए। इन हब्स में जैविक उत्पादों की पैकेजिंग और निर्यात की भी सुविधा हो।
4. *पशुपालन और वर्मी-कल्चर*: गोबर की उपलब्धता बढ़ाने के लिए पशुपालन को प्रोत्साहित करने के साथ-साथ वर्मी-कल्चर (केंचुआ खाद) को बड़े पैमाने पर अपनाया जाए। केंचुओं से तैयार खाद न केवल उर्वरक है, बल्कि मिट्टी की संरचना भी बेहतर करती है। इसके अतिरिक्त देश में बढ़ते गोवंश एवं गौशालाओं के माध्यम से बड़े पैमाने पर खाद निर्माण किया जा सकता है।
आरतिया ने सुझाव दिया कि देश की गोचर और वन भूमि पर ऐसे पौधों को लगाया जाए, जो आर्गेनिक खाद के रूप में उपयोगी हों, जैसे लेग्यूमिनस पौधे (जो नाइट्रोजन को मिट्टी में जोड़ते हैं)। साथ ही, सरकार को रसायनिक खाद के उपयोग को कम करने के लिए अनुदान नीति पर पुनर्विचार करना चाहिए और अगले दशक में इसे क्रमबद्ध तरीके से शून्य स्तर तक लाना चाहिए। इससे न केवल पर्यावरण संरक्षण होगा, बल्कि स्वस्थ खाद्य उत्पादन और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी बल मिलेगा।
आरतिया का मानना है कि इन नवाचारों से भारत आत्मनिर्भर खाद उत्पादन की ओर अग्रसर होगा और वैश्विक स्तर पर जैविक उत्पादों के बाजार में अग्रणी बन सकता है।