आनलाइन गेमिंग व लाॅटरी पर प्रतिबंध लगाये सरकार, बच्चों व युवाओं पर हो रहा अधिक दुष्प्रभाव – Artia

जयपुर।

अखिल राज्य ट्रेड एण्ड इण्डस्ट्रीज एसोसियेशन आरतिया ने केंद्र सरकार से आग्रह किया है कि आनलाइन गेमिंग व लाॅटरी की अनुमति का जो सिलसिला प्रारंभ किया गया है, उस पर तत्काल प्रतिबंध लगाया   जाये। आरतिया के अध्यक्ष विष्णु भूत, मुख्य संरक्षक आषीष सर्राफ, मुख्य सलाहकार कमल कंदोई, कार्यकारी अध्यक्ष प्रेम बियाणी और वरिष्ठ उपाध्यक्ष कैलाष षर्मा ने कहा है कि आनलाइन गेमिंग और लाॅटरी वस्तुतः आर्थिक अपराध की प्रकृति के काम हैं और इनसे बड़ा आर्थिक और सामाजिक नुकसान होता है। स्कूली छात्रों-युवाओं से लेकर सेवा निवृत्त पेंषनर्स तक इसकी लत के षिकार होना षुरू हो गये हैं और बड़ा आर्थिक नुकसान उठा रहे हैं।
आरतिया का कहना है कि यह सामाजिक दुष्प्रवृत्ति हमारी बाजार अर्थ-व्यवस्था के लिए भी घातक है। इसलिए कि धन का प्रवाह नागरिकों के हाथ से निकलकर अनुत्पादक प्रक्रिया में समाहित हो जाता है। यह स्थिति देष के आर्थिक परिदृष्य के लिए षुभ नहीं है। कायदे से धन का अपना एक परिचक्र होता है, जिसमें खर्च करने वाला व्यक्ति जो धन बाजार अर्थ-व्यवस्था में प्रवाहित करता है, वह धन बाजार से उत्पादक तक और उत्पादक से कर्मचारियों व कच्चा माल बनाने वालों तक पहुंचता है। इसके अलावा सरकार को भी इस बाजार अर्थ-व्यवस्था में आए धन से 20-25 प्रतिषत तक हिस्सा विभिन्न करों के रूप में हासिल होता है, जिससे सरकार का अपना अर्थ-तंत्र मजबूत होता है।
आरतिया का कहना है कि इसके पहले यह दुष्प्रवृत्ति अपनी जकड़न बढ़ाए केंद्र सरकार हिम्मत कर पहल करे और भारत में उत्तरी कोरिया की तर्ज पर आनलाइन गेमिंग व लाटरी पर तत्काल प्रतिबंध लगाया जाये।  अभी जितने आनलाइन पोर्टल आए हैं, उनका मासिक गेमिंग आकार 8-10 हजार करोड़ रूपये हो गया है अर्थात एक लाख करोड़ रूपये वार्षिक। लेकिन जिस गति से नये गेमिंग आपरेटर्स को अनुमति मिल रही है, उसे देखते हुए 2025 तक यह आकार 10 लाख करोड़ रूपये से अधिक हो जायेगा। इतनी बड़ी रकम का नान प्रोडक्टिव होना जहां आर्थिक तौर पर नुकसानदायक है, वहीं छात्रों-युवाओं और पेंषनर्स में इसकी लत फैलना इन सभी के परिवार की आर्थिक सेहत को डैमेज करने वाला है। यदि इसे तुरन्त प्रभाव से प्रतिबंधित नहीं किया गया तो इसके भयावह परिणामों का आंकलन कल्पना से भी बाहर हो जायेगा।

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