डंप-कचरे के निस्तारण की नीति को बनायें व्यवहारिक: ARTIA

जयपुर। आल राज. ट्ेड एंड इंडस्ट्ीज एसोसियेषन ने कहा है कि राजस्थान में डंप कचरे के निस्तारण संबंधी नीति को व्यवहारिक बनाये जाने की आवष्यकता है, ताकि इसमें निवेष और रोजगार के अवसर बनें और राज्य की पर्यावरण रैंकिंग जो न्यूनतम स्तर पर आई हुई है उसमें सुधार हो। आरतिया के विष्णु भूत, आषीष सर्राफ, कमल कंदोई, प्रेम बियाणी, कैलाष षर्मा, ऋतुराज नरूका, अयूब खान, सुरेष बंसल और दिनेष षर्मा ने कहा है कि सेंटर फार साइंस एंड एनवायरमेंट की ताजा रिपोर्ट के अनुसार राजस्थान की भूमि पर जो कचरा डाला जाता है, उसमें केवल 4 प्रतिषत का निस्तारण ही हो पा रहा है, बाकी 96 प्रतिषत कचरे का निस्तारण होना बाकी है। यह डंप हुआ कचरा जन-स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक है, तो पर्यावरण के लिए भी चिंताजनक है।
आरतिया का कहना है कि इस कचरे के निस्तारण तथा पर्यावरणीय स्थिति में सुधार के लिए मुख्यमंत्री कार्यालय की निगरानी में एक कार्यबल बने, जो कि संबंधित स्टेक-होल्डर्स तथा कारोबारी संगठनों से बातचीत कर इस समस्या के व्यवहारिक समाधान की दिषा में पहल करे। राज्य में कचरे के संग्रहण तथा पुर्नचक्रण के जरिये उपयोग मंे लाने का काम प्राथमिकता से किया जाना चाहिये। इसके लिए प्रस्ताव आमंत्रित किये जाने चाहिये, जिन पर त्वरित फैसला कर तदनुसार कचरा-निस्तारण की जिम्मेदारी सुनिष्चित की जानी चाहिये। अभी यह काम स्थानीय निकायों की जकड़न में है और उस कारण इस पर प्रभावी व आवष्यक पहल नहीं हो पा रही। फल-सब्जी मंडियों में प्रतिदिन हजारों टन अवषिष्ट एकत्र होता है और वह भी लैंड-फिलिंग में ही काम आता है। इससे नजदीकी इलाकों का पर्यावरण अलग दूषित हो रहा है।
उल्लेखनीय है कि देष की पर्यावरण रैंकिंग जो कि सेंटर फार साइंस एंड एनवायरमेंट ने हाल ही जारी की है, उसमें राजस्थान को सबसे निचला स्थान मिला है। राजस्थान को 10 में से 2.75 अंक ही दिये गये हैं। इसी तरह जन-स्वास्थ्य के क्षेत्र में राजस्थान की रैंकिंग देष में 24 वीं, सार्वजनिक ढांचा व मानव विकास क्षेत्र में 27 वीं रैंकिंग मिली है। यह स्थिति चिंताजनक है। आरतिया ने यह भी सुझाया है कि राजस्थान में जो जल-संग्रहण क्षेत्र हैं, उनके दुरूस्तीकरण की जरूरत है। उक्त रिपोर्ट के अनुसार राज्य में कुल 16939 जल-संग्रहण क्षेत्र हैं, जिनमें 3523 काम ही नहीं आ रहे। इन जल संग्रहण क्षेत्रों का उपयोग सुनिष्चित किया जाये, ताकि आगामी मानसून के समय इनमें जल-संग्रहण किया जा सके।

प्रसिद्ध समाचार पत्रों में कवरेज