माइनर मिनरल्स को मेजर बनाने से उपजे संकट पर, राजस्थान सरकार से समाधान की उम्मीद


जयपुर। केंद्र सरकार ने 20 फरवरी को एक अधिसूचना जारी कर चार माइनर मिनरल्स फेल्सफार, क्वार्ट्ज, माइका और बेराइट्स को मेजर मिनरल्स का दर्जा दे दिया, नतीजा ये मिनरल्स मेजर मिनरल्स एंड डेवलपमेंट रूल्स के दायरे में आ गए हैं। अब इन खदान संचालकों व इन मिनरल्स को प्रोसेस करने वाली स्थानीय इकाइयों जिन्हें बाल मिल्स कहा जाता है के सामने अस्तित्व का संकट आ गया है।

अखिल राज्य ट्रेड एंड इंडस्ट्रीज एसोसिएशन (आरतिया) के विष्णु भूत, कमल कंदोई, आशीष सर्राफ, प्रेम बियाणी और कैलाश शर्मा तथा राजस्थान माइनर मिनरल्स उद्योग संघ के संयोजक सुरेन्द्र सिंह राजपुरोहित ने केंद्र सरकार के इस फैसले पर चिंता जताते हुए कहा है कि इससे राजस्थान में तीन हजार खदान संचालकों और इतने ही प्रोफेसर्स की दिक्कतें बढ़ गई हैं। वस्तुत: इन माइनर मिनरल्स के उत्पादन व प्रोसेसिंग को संरक्षित करने के लिए राजस्थान सरकार से मांग की गई थी कि राज्य के बाहर इनकी निकासी पर 500 रूपए प्रति टन शुल्क लगाया जाये, ताकि राज्य में उत्पादित खनिज का राजस्थान में ही वैल्यू एडीशन हो और प्रोसेसिंग इकाइयों का काम बढ़े। पर केंद्र सरकार के फैसले ने दुतरफा संकट खड़ा कर दिया है।

मेजर मिनरल्स के दायरे में आने के कारण प्रदेश के ऐसे सभी खान संचालकों को मिनरल्स कंजर्वेशन एंड डेवलपमेंट एक्ट की पालना करने के लिए सबसे पहले इंडियन ब्यूरो आफ माइंस में रजिस्टर्ड करवाना होगा, इसके लिए 31 मार्च, 2025 की तारीख तय की गई है। इसके अलावा प्रति माह निर्धारित फार्मेट में मासिक और वार्षिक रिटर्न फाइल करना अनिवार्य रहेगा। इतना ही नहीं सभी खदान संचालकों को यह निर्देश भी दिया गया है कि इंडियन ब्यूरो आफ माइंस के यहां अपना माइनिंग प्लान प्रस्तुत कर 30 जून 2025 तक एप्रूव करवायें । लीज भी केंद्र सरकार के जरिए निष्पादित होगी।

अचानक जारी इस आदेश से सभी खान संचालक हतप्रभ हैं। आरतिया और राजस्थान माइनर मिनरल्स उद्योग संघ ने राजस्थान सरकार से इस मामले में हस्तक्षेप कर राज्य के खदान संचालकों का पक्ष केंद्र सरकार के समक्ष प्रस्तुत कर राहत दिलाने की मांग की है।

यहां उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को खनिज पर रायल्टी के अलावा अन्य शुल्क आरोपित करने के अधिकार संबंधी निर्देश दे रखे हैं, लेकिन केंद्र सरकार के नये आदेश से सुप्रीम कोर्ट के निर्देश को लेकर स्थिति अस्पष्ट हो गई है। दोनों संगठनों ने कहा है कि इस फैसले का असर छह हजार कारोबारी इकाइयों और उनसे रोजगार पा रहे दो लाख परिवारों पर आया है, साथ ही राज्य के अधिकार भी प्रभावित हुए हैं। अतः राजस्थान सरकार इस मसले की गंभीरता समझ कर तदनुसार पहल करे।

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